जमशेदपुर : अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र निर्गत करने में केरल हाई कोर्ट के आदेश का पालन करे राज्य सरकार- रघुवर दास

 झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर अनुसूचित जनजाति के लोगों को जाति प्रमाण पत्र निर्गत करने में स्थापित रीति रिवाज, पारंपरिक वेशभूषा और परंपराओं को मानने वालों को प्राथमिकता देने का आग्रह किया.

जमशेदपुर : अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र निर्गत करने में केरल हाई कोर्ट के आदेश का पालन करे राज्य सरकार- रघुवर दास

Jamshedpur :  झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर अनुसूचित जनजाति के लोगों को जाति प्रमाण पत्र निर्गत करने में स्थापित रीति रिवाज, पारंपरिक वेशभूषा और परंपराओं को मानने वालों को प्राथमिकता देने का आग्रह किया. पत्र में उन्होंने केरल हाई कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट ने इस संबंध में अपनी स्पष्ट राय प्रकट की है. जिसका पालन किया जाना चाहिए. कहा कि झारखंमड में स्थापित रीति रिवाज, पारंपरिक वेशभूषा और परंपराओं को मानने वाले अनुसूचित समाज के लोग आज अपने अधिकार के दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं. लेकिन राज्य सरकार मौन है. उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज ने बड़े भरोसे के साथ आपको मुख्यमंत्री के पद पर बैठाया था, लेकिन अब वो छला महसूस कर रहे हैं. जनजातीय समाज की परंपरा और पहचान आपकी सरकार की वजह से संकट में आ गयी है. पर्दे के पीछे से आपकी सरकार चलानेवाले चाहते हैं कि यहां का अनुसूचित जनजाति समाज मांदर की जगह गिटार पकड़ ले.

सरना धर्म कोड पर समाज को गुमराह करने का लगाया आरोप

हेमंत सोरेन को भेजे पत्र में रघुवर दास ने उनपर निशाना साधते हुए कहा कि सरना कोड के नाम पर आप जनजातीय समाज विशेष कर सरना समाज को गुमराह करने की बजाय जो आपके हाथ में हैं कम से कम उसे तो लागू कर दें. अनुसूचित जनजाति समाज की सालों पुरानी मांग है कि स्थापित रीति रिवाज, पारंपरिक वेशभूषा और परंपराओं को माननेवालो को ही एसटी जाति प्रमाण पत्र निर्गत किया जाये. 1997 में केरल राज्य एवं एक अन्य बनाम चन्द्रमोहनन् मामले में केरल हाईकोर्ट ने स्पष्ट फैसला सुनाया था कि अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र निर्गत करने का क्या-क्या आधार होना चाहिए. लेकिन आपकी सरकार इस अहम मुद्दे पर मौन है.

क्या है केरल हाई कोर्ट का निर्णय

आवेदक के माता एवं पिता दोनों ही अनुसूचित जनजाति के सदस्य होने चाहिए। उनके माता-पिता का विवाह संबंधित जनजाति के रूढ़ियों एवं परंपरा के अनुसार किया गया होना चाहिए. उनका विवाह जनजाति समाज द्वारा किया गया हो एवं उसे समाज के द्वारा मान्यता दी गई हो. आवेदक एवं उसके माता-पिता के द्वारा जातिगत रूढ़ियों, परंपराओं एवं अनुष्ठान का पालन किया जा रहा है. आवेदक एवं उसके माता-पिता के द्वारा अपने पूर्वजों की विरासत एवं उत्तराधिकार के नियमों का पालन किया जा रहा है या नहीं. इन सब मामलों की जांच के पश्चात् ही जाति प्रमाण पत्र निर्गत किया जाना चाहिए.