झामुमो विधायक का अनोखा संकल्प

आज़ादी के बाद से किसी भी राजनीतिक दल में अपने ज़मीनी स्तर कार्यकर्ताओ को लेकर नही नही दिखी संजीदगी अक्सर राजनीतिक दलों में *कार्यकर्ताओं को सिर्फ चुनावी नजरिये से देखा जाता है,चुनावी कार्य के लाभ के लिये देखा जाता है,आज ये बड़ी बहस का भी विषय है,की आज़ादी के बाद 76 वर्षो में विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपनी ग्रामीण स्तर बूथ कार्यकर्ताओं को कितना सम्मान दिया और सत्ता में आने के बाद कितनी मूल भूत सुविधाये विभिन्न दलों द्वारा उपलब्ध कराई गई* इतिहास ढूंढेंगे तो हम पायेंगे किसी भी राजनीतिक दल ने अपने कनीय कार्यकर्ताओं के भविष्य की नही सोची! *उन्हें न उतना मान मिला न मानदेय बस एक्का दुक्का पुल पुलिया नली गली का काम मिल गया वो भी जद्दोजेहद के बाद घण्टो माननीयों के दरवाजे में खड़े रहने के बाद*..भले ही राजनीति दलों के कार्यकर्ताओं में ऊपरी तामझाम दिखे हो पर वे अंदर खाने खोखले ही रहे ,*अर्थ-अभाव में बड़े बड़े राजनीतिक के कार्यकर्ताओं को बीमारी से संघर्ष करते भी देखा गया* ..किसी भी दल का राजनीतिक कार्यकर्ता केवल और केवल उपयोग/प्रयोग की वस्तु ही बना रहा *देश बदल गया पर अंदर खाने राजनीतिक कार्यकर्ताओ के दिन नही बदले* आज राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं की *वर्चुअल रियलिटी* पर गौर करे तो बड़ी बड़ी विकास की बात करने वाले राजनीतिक दलों में अपने कार्यकर्ताओं को लेकर कोई विजन नही दिखता है,*राजनीतिक दल कार्यकर्ताओ की बदौलत ज़ीरो से हीरो बन जाते है,पर कार्यकर्ताओं को मानदेय की बात को छोडिय उन्हें वो मान भी नही मिलता जो मिलना चाहिये* ...लेकिन इस मिथक तोड़ रहे है मंझगाव के *विधायक सह विधानसभा प्राकलन समिति के अध्यक्ष निरल पूर्ति* आज उन्होंने अपने एक कार्यकर्ता *विश्वनाथ बिरुआ जिनकी अपराधियो द्वारा हत्या कर दी गई थी उनकी उन्होंने जहाँ प्रतिमा की स्थापना करवाई है वही मंझारी के पुटिसिया गांव के फुटबॉल मैदान का नाम भी शहीद विश्वनाथ बिरुआ के नाम पर कर दिया है*,इस सम्बंध में *विधायक निरल पूर्ति का कहना है,वक्त बदल रहा राजनीति की विचार धारा में अपने छोटे से छोटे कार्यकर्ताओं के प्रति सकारत्मक सोच प्रथम दृष्टिकोण के साथ प्राथमिकता सूची में रखना चाहिये ..मेरी सोच इसी दिशा में है,अपने कार्यकर्ताओं को सबल बनाना